#623rd_GodKabir_PrakatDiwas
काशी में एक लहरतारा तालाब था। गंगा नदी का जल लहरों के द्वारा नीची पटरी के ऊपर से उछल कर एक सरोवर में आता था। इसलिए उस सरोवर का नाम लहरतारा पड़ा। उस तालाब में बड़े-2 कमल के फूल उगे हुए थे। नीरू-नीमा(नि:सन्तान दम्पत्ति थे) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के लिए गए हुए थे। वहां नीरू - नीमा को कमल कद फूल पर शिशु रूप में कबीर परमात्मा मिले थे।
बालक रूप में कबीर परमात्मा को लेकर जब नीरू तथा नीमा अपने घर जुलाहा मोहल्ला आए। जिस भी नर व नारी ने नवजात शिशु रूप में परमेश्वर कबीर जी को देखा वह देखता ही रह गया। परमेश्वर का शरीर अति सुन्दर था। आँख जैसे कमल का फूल होए, घुँघराले बाल, लम्बे हाथ, लम्बी-2 अँगुलियाँ, शरीर से मानो नूर झलक रहा हो। पूरी काशी नगरी में ऐसा अद्धभुत बालक नहीं था।
गरीब ,काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।
पूरी काशी परमेश्वर कबीर जी के बालक रूप को देखने को उमड़ पड़ी। बच्चे को देखकर कोई कह रहा है था कि ये बालक ब्रह्मा का अवतार है कोई कह रहा था साक्षात् विष्णु भगवान आये हैं, कोई इन्द्र कुबेर कह रहा था।
जब काजी कुरान लेकर शिशु रूप कबीर परमेश्वर का नामंकन करने गए तब कुरान शरीफ खोली तो उसमें सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले मैं कबीर अल्लाह अर्थात् अल्लाहु अकबर, हूँ। मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।
काजी गये कुरान ले, धरि लड़के का नाम।
अक्षर अक्षर में फुरया, धन कबीर बलि जांव।।
सकल कुरान कबीर है, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहै, गई दीन की टेक।।
कबीर परमेश्वर सन् 1398, ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को ब्रह्म मुहूर्त में अपने निज धाम सतलोक से चलकर आए और काशी के लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप धारण करके विराजमान हुए। जहाँ से नीरू-नीमा उठा कर ले गये और पुत्रवत पालन किया।
कबीर, ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
कबीर परमात्मा का जन्म माँ के गर्भ से नहीं होता। वह स्वयं सतलोक से सशरीर आते हैं अपना तत्वज्ञान देने और मोक्ष प्रदान करने।
संत गरीबदास जी की वाणी है -
न सतगरु जननी जने, उनके मां न बाप।
पिंड ब्रह्मंड से अगम है, जहां न तीनों ताप।।
🎊कबीर परमेश्वर का शरीर हाड़ मांस से बना नहीं है। वह अविनाशी परमात्मा हैं। कबीर परमात्मा जन्म-मृत्यु से परे हैं। वह सशरीर प्रकट हुए थे और सशरीर मगहर से अपने सतलोक गए थे।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
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